Saturday, 14 August 2021

नामवर सिंह एक निहायत ही जातिवादी किस्म के व्यक्ति थे यह बात लोग जानते है।  लेकिन क्या उन्होंने 

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विजय देव नारायण सही की रचनाओं को चुराया था?  

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स्वर्गीय नामवर सिंह का नाम सुनते मुझे कंचनलता साही की याद आती है जो मेरी प्रोफेसर थीं इंग्लिश डिपार्टमेंट, इलाहबाद यूनिवर्सिटी में. बात १९९८-९९ की होगी. मानस मुकुल दास सर ने एक रोज बताया कि वो मेरे बारे में पूछ रही थीं और अपने घर बुलाया है. मैं गया तो उन्होंने बहुत सारी बातें बताई. उस समय मैंने ये बातें टाइम्स ऑफ़ इंडिया में लिखी भी थी. इनमे से मुख्य बात जो थी वह मैं फिर से बताना चाहता हूँ.

उन्होंने बताया कि उनके पति स्वर्गीय विजयदेव नारायण साही जहा भी साहित्य पर बोलने जाते थे नामवर जी साथ साथ जाते थे एक टेप रिकॉर्डर ले कर. यह सिलसिला लगभग १० साल चला. कभी कभी नामवर सिंह को साही जी के अनुरोध पर भाषण देने के लिए कहा जाता. विजयदेव नारायण साही के आखिरी कुछ वर्षों में नामवर सिंह व्यस्त रहे. साही जी की मृत्यु नवम्बर १९८२ में हो गयी. उसके बाद नामवर सिंह का कंचनलता जी के पास तीन-चार बार फ़ोन आया कि उनके पास साही जी के कुछ भाषणों की रिकॉर्डिंग है जो वह कंचनलता जी को देना चाहते है. कंचनलता जी को एक वर्ष बाद दिल्ली जाने का समय मिला तो वह नामवर सिंह से मिलीं. एक घंटे की मीटिंग में नामवर सिंह ने उस टेप रिकॉर्डिंग की चर्चा नहीं की. जब वह जाने लगीं तो याद दिलाया कि वह रिकॉर्डिंग देना चाहते थे तो नामवर सिंह ने कहा उनके पास तो ऐसी कोई रिकॉर्डिंग नहीं है. बाद के समय में नामवर सिंह ने काफी लिखा.
भक्त यह न समझें कि मैं नामवर सिंह को जज कर रहा हूँ. उनके बारे में एक अच्छी बात भी सुनी है. जब उनके सरे भाई (काशीनाथ सिंह भी) आपस में प्रॉपर्टी के लिए झगड़ रहे थे तब नामवर सिंह ने बटवारा कर दिया और उन्होंने खुद कुछ नहीं लिया.

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